जौ बिधिना[1] अपबस[2] करि पाऊं। तौ सखि कह्यौ हौइ कछु तेरो, अपनी साध पुराऊं॥[3] लोचन रोम-रोम प्रति मांगों पुनि-पुनि त्रास[4] दिखाऊं। इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति[5] नई चलाऊं॥ कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्वे, नहिं ठाऊं।[6] एते पर ये निमिष[7] सूर, सुनि, यह दु:ख काहि सुनाऊं॥