ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।[1]
तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥
अपनो जोग सैंति[2] किन राखत, इहां देत कत डारे।
तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥
हम गिरिधर के नाम गुननि बस, और काहि उर धारे।
सूरदास, हम सबै एकमत तुम सब खोटे[3] कारे॥