नाथ, अनाथन की सुधि लीजै। गोपी गाइ ग्वाल गौ-सुत सब दीन मलीन दिंनहिं दिन छीज॥ नैन नीर-धारा बाढ़ी अति ब्रज किन कर गहि लीजै। इतनी बिनती सुनहु हमारी, बारक तो[1] पतियां लिखि दीजै॥ चरन कमल-दरसन नवनौका[2] करुनासिन्धु जगत् जसु लीजै। सूरदास प्रभु आस मिलन की एक बार आवन ब्रज कीजै॥