तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान। छूटि गये कैसे जन[1] जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥ जैसे नाद[2]-मगन बन सारंग,[3] बधै बधिक तनु बान। ज्यौं चितवै ससि ओर चकोरी, देखत हीं सुख मान॥ जैसे कमल होत परिफुल्लत, देखत प्रियतम भान।[4] दूरदास, प्रभु हरिगुन त्योंही सुनियत नितप्रति कान॥