फिर फिर कहा सिखावत बात। प्रात काल उठि देखत ऊधो, घर घर माखन खात॥ जाकी बात कहत हौ हम सों, सो है हम तैं दूरि। इहं हैं निकट जसोदानन्दन प्रान-सजीवनि भूरि॥ बालक संग लियें दधि चोरत, खात खवावत डोलत। सूर, सीस नीचैं कत नावत, अब नहिं बोलत॥