कहावत ऐसे दानी दानि। चारि पदारथ दिये सुदामहिं, अरु गुरु को सुत आनि॥ रावन के दस मस्तक छेद[1], सर हति सारंगपानि।[2] लंका राज बिभीषन दीनों पूरबली[3] पहिचानि। मित्र सुदामा कियो अचानक प्रीति पुरातन जानि। सूरदास सों कहा निठुरई[4], नैननि हूं की हानि॥