जसुमति दौरि लिये हरि कनियां।[1] आजु गयौ मेरौ[2] गाय चरावन, हौं बलि जाउं निछनियां॥[3] मो कारन[4] कचू आन्यौ नाहीं बन फल तोरि नन्हैया।[5] तुमहिं मिलैं मैं अति सुख पायौ,मेरे कुंवर कन्हैया॥ कछुक खाहु जो भावै मोहन. दैरी माखन रोटी। सूरदास, प्रभु जीवहु जुग-जुग हरि-हलधर की जोटी॥[6]