रे मन मूरख, जनम गँवायौ। करि अभिमान विषय-रस गीध्यौ, स्याम सरन नहिं आयौ॥ यह संसार सुवा-सेमर ज्यौं, सुन्दर देखि लुभायौ। चाखन लाग्यौ रुई गई उडि़, हाथ कछू नहिं आयौ॥ कहा होत अब के पछिताऐं, पहिलैं पाप कमायौ। कहत सूर भगवंत भजन बिनु, सिर धुनि-धुनि पछितायौ॥