आछो[1] गात[2] अकारथ[3] गार्यो।[4] करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों[5] हार्यो॥ निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ[6] चार्यो।[7] अब लाग्यो पछितान पाय दु:ख दीन दई[8] कौ मार्यो॥ कामी कृपन[9] कुचील[10] कुदरसन,[11] को न कृपा करि तार्यो। तातें कहत दयालु देव पुनि, काहै सूर बिसार्यो॥