नीके रहियौ[1] जसुमति मैया। आवहिंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया॥ जा दिन तें हम तुम तें बिछुरै, कह्यौ न कोउ `कन्हैया'। कबहुं प्रात न कियौ कलेवा, सांझ न पीन्हीं पैया॥[2] वंशी बैत विषान[3] दैखियौ द्वार अबेर सबेरो।[4] लै जिनि जाइ चुराइ राधिका कछुक खिलौना मेरो॥ कहियौ जाइ नंद बाबा सों, बहुत निठुर मन कीन्हौं। सूरदास, पहुंचाइ मधुपुरी बहुरि न सोधौ[5] लीन्हौं॥