सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥ चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥ कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥