बदन मनोहर गात सखी री कौन तुम्हारे जात। राजिव नैन धनुष कर लीन्हे बदन मनोहर गात॥ लज्जित होहिं पुरबधू पूछैं अंग अंग मुसकात। अति मृदु चरन पंथ बन बिहरत सुनियत अद्भुत बात॥ सुंदर तन सुकुमार दोउ जन सूर किरिन कुम्हलात। देखि मनोहर तीनौं मूरति त्रिबिध ताप तन जात॥