ऊधो, हम लायक़ सिख[1] दीजै।
यह उपदेस अगिनि तै तातो,[2] कहो कौन बिधि कीजै॥
तुमहीं कहौ, इहां इतननि में सीखनहारी को है।
जोगी जती[3] रहित माया तैं तिनहीं यह मत सोहै॥[4]
कहा सुनत बिपरीत लोक में यह सब कोई कैहै।[5]
देखौ धौं अपने मन सब कोई तुमहीं दूषन दैहै॥
चंदन अगरु[6] सुगंध जे लेपत, का विभूति[7] तन छाजै।[8]
सूर, कहौ सोभा क्यों पावै आंखि आंधरी आंजै॥