सरन गये को को न उबार्यौ।[1] जब जब भीर[2] परीं संतति पै, चक्र सुदरसन तहां संभार्यौ।[3] महाप्रसाद भयौ अंबरीष[4] कों, दुरवासा[5] को क्रोध निवार्यो॥ ग्वालिन हैत धर्यौ गोवर्धन, प्रगट इन्द्र कौ गर्व प्रहार्यौ॥[6] कृपा करी प्रहलाद भक्त पै, खम्भ फारि हिरनाकुस मार्यौ। नरहरि[7] रूप धर्यौ करुनाकर, छिनक माहिं उर नखनि[8] बिदार्यौ।[9] ग्राह-ग्रसित गज कों जल बूड़त, नाम लेत वाकौ दु:ख टार्यौ॥ सूर स्याम बिनु और करै को, रंगभूमि[10] में कंस पछार्यौ॥