मेरो कान्ह कमलदललोचन।[1]
अब की बेर बहुरि फिरि आवहु, कहा लगे जिय सोचन॥
यह लालसा होति हिय मेरे, बैठी देखति रैहौं॥[2]
गाइ चरावन कान्ह कुंवर सों भूलि न कबहूं कैहौं॥[3]
करत अन्याय[4] न कबहुं बरजिहौं,[5] अरु माखन की चोरी।
अपने जियत नैन भरि देखौं, हरि हलधर की जोरी॥[6]
एक बेर ह्वै जाहु यहां लौं, मेरे ललन कन्हैया।
चारि दिवसहीं पहुनई[7] कीजौ, तलफति तेरी मैया॥