अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल। काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥ महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल। भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥ तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल। माया कौ कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल॥ कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं काल। सूरदास की सबै अबिद्या दूरि करौ नँदलाल॥