मो परतिग्या रहै कि जाउ -सूरदास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
मो परतिग्या रहै कि जाउ -सूरदास
सूरदास
सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

मो परतिग्या[1] रहै कि जाउ।
इत पारथ[2] कोप्यौ है हम पै, उत भीषम भटराउ॥[3]
रथ तै उतरि चक्र धरि कर प्रभु सुभटहिं सन्मुख आयौ।
ज्यों कंदर[4] तें निकसि सिंह झुकि[5] गजजुथनि पै धायौ॥
आय निकट श्रीनाथ बिचारी, परी तिलक पर दीठि।[6]
सीतल भई चक्र की ज्वाला, हरि हंसि दीनी पीठि॥
"जय जय जय जनबत्सल स्वामी," सांतनु-सुत यौं भाखै।[7]
"तुम बिनु ऐसो कौन दूसरो, जौं मेरो प्रन राखै॥"
"साधु साधु[8] सुरसरी-सुवन[9] तुम मैं प्रन लागि डराऊं।"
सूरदास, भक्त दोऊ दिसि,[10] का पै चक्र चलाऊं॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रतिज्ञा, प्रण।
  2. पार्थ, पृथा के पुत्र, अर्जुन।
  3. योद्धाओं में श्रेष्ठ।
  4. कंदरा, गुफ़ा।
  5. झपटकर।
  6. दृष्टि, नजर।
  7. कहता है।
  8. धन्य हो।
  9. गंगा के पुत्र भीष्म।
  10. तरफ।

संबंधित लेख