ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी। सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ सागर केहि बिध खारी॥ उज्ज्वल पंख दिये बगुला को कोयल केहि गुन कारी॥ सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे बन-बन फिरत उजारी॥ मूरख-मूरख राजे कीन्हे पंडित फिरत भिखारी॥ सूर श्याम मिलने की आसा छिन-छिन बीतत भारी॥