जनम अकारथ खोइसि रे मन, जनम अकारथ खोइसि। हरि की भक्ति न कबहूँ कीन्हीं, उदर भरे परि सोइसि॥ निसि-दिन फिरत रहत मुँह बाए, अहमिति जनम बिगोइसि। गोड़ पसारि परयो दोउ नीकैं, अब कैसी कहा होइसि॥ काल जमनि सौं आनि बनी है, देखि-देखि मुख रोइसि। सूर स्याम बिनु कौन छुड़ाये, चले जाव भई पोइसि॥