"आछो गात अकारथ गार्यो -सूरदास": अवतरणों में अंतर
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करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों<ref>जीव।</ref> हार्यो॥ | करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों<ref>जीव।</ref> हार्यो॥ | ||
निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ<ref>तेरी।</ref> चार्यो।<ref>चारों नेत्र, दो बाहर के नेत्र और दो भीतर के ज्ञान नेत्र।</ref> | निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ<ref>तेरी।</ref> चार्यो।<ref>चारों नेत्र, दो बाहर के नेत्र और दो भीतर के ज्ञान नेत्र।</ref> | ||
अब लाग्यो पछितान पाय | अब लाग्यो पछितान पाय दु:ख दीन दई<ref>दुर्दैव, दुर्भाग्य।</ref> कौ मार्यो॥ | ||
कामी कृपन<ref>लोभी, घृणित।</ref> कुचील<ref>मैला, गंदा।</ref> कुदरसन,<ref>कुरूप।</ref> को न कृपा करि तार्यो। | कामी कृपन<ref>लोभी, घृणित।</ref> कुचील<ref>मैला, गंदा।</ref> कुदरसन,<ref>कुरूप।</ref> को न कृपा करि तार्यो। | ||
तातें कहत दयालु देव पुनि, काहै सूर बिसार्यो॥ | तातें कहत दयालु देव पुनि, काहै सूर बिसार्यो॥ |
14:01, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |