"जौ बिधिना अपबस करि पाऊं -सूरदास": अवतरणों में अंतर
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इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति<ref>रीति।</ref> नई चलाऊं॥ | इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति<ref>रीति।</ref> नई चलाऊं॥ | ||
कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्वे, नहिं ठाऊं।<ref>स्थान।</ref> | कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्वे, नहिं ठाऊं।<ref>स्थान।</ref> | ||
एते पर ये निमिष<ref>पलक।</ref> सूर, सुनि, यह | एते पर ये निमिष<ref>पलक।</ref> सूर, सुनि, यह दु:ख काहि सुनाऊं॥ | ||
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14:05, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |