"चरन कमल बंदौ हरिराई -सूरदास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replace - "१" to "1")
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
<poem>
<poem>
चरन कमल बंदौ हरिराई ।
चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥१॥
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥1॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥   
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥   

09:48, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
चरन कमल बंदौ हरिराई -सूरदास
सूरदास
सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥1॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ


संबंधित लेख