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सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
 
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
 
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
 
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
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जब मिलि गए तब एक-वरन् ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
 
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
 
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
 
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥   
 
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥   

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हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ -सूरदास
सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन् ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ


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