चैत्ररथवन
चैत्ररथ | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- चैत्ररथ (बहुविकल्पी) |
चैत्ररथवन का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड[1] में हुआ है-
'सत्यसंध: शुचिर्भूत्वा प्रेक्षमाण: शिलावहाम् अभ्यगात् स महाशैलान् वनं चैत्ररथं प्रति।'
अर्थात् "केकय से अयोध्या आते समय सत्यसंध भरत पवित्र होकर शिलावह नदी को देखते हुए ऊँचे पर्वतों को पार करके चैत्ररथवन की ओर चले।"
- उपर्युक्त प्रसंग से जान पड़ता है कि यह वन सरस्वती नदी के पश्चिम में, सम्भवत: पंजाब के पहाड़ी प्रदेश में स्थित रहा होगा। इसके आगे सरस्वती का वर्णन है।
अन्य प्रसंग
- महाभारत, सभापर्व के एक अन्य प्रसंग के अनुसार चैत्ररथवन को द्वारका (काठियावाड़) के उत्तर में स्थित वेणुमान पर्वत के चतुर्दिक चार महावनों या उद्यानों में से एक बताया गया है-
'भाति चैत्ररथं चैव नन्दनं च महावनं, रमणं भावनं चैव वेणुमन्तं समन्तत:।'[2]
- पुराणों के अनुसार चैत्ररथवन धनाधिप कुबेर का उद्यान है, जो अलका के निकट मेरु पर्वत के मंदार नामक शिखर पर स्थित था-
'अलकायां चैत्ररथादिवनेष्वमलपद्मखंडेषु।'[3]
- वाल्मीकि रामायण[4] में नंदिग्राम के वृक्षों को चैत्ररथवन के वृक्षों के समान ही कुसुमित बताया गया है-
'आससादद्रुमान् फुल्लान् नंदिग्रामसभीपगान् सुराधिपस्योपवने तथा चैत्ररथेंद्रुमान्।'
'एवं तयोरध्वनि दैवयोगादासेदुषो: सख्यमचिन्त्य हेतु एकोययौ चैत्ररथप्रदेशान्सौराज्यरम्यानपरो त्रिदर्भान्।'
- रघुवंश[6] में इंदुमती स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिप सुषेण के राज्य में स्थित वृंदावन (मथुरा के निकट) को चैत्ररथ के समान बताया गया है-
'संभाव्य भर्ताराममुं युवानं मृदुप्रवालोत्तर पुष्पशय्ये वृन्दावने चैत्ररथादनूने निर्विश्यतां सुंदरियौवन श्री:।'
'अमरकोश[7] में चैत्ररथ को कुबेर का उद्यान कहा गया है-
'अस्योद्यानं चैत्ररथम् पुत्रस्तु नलकुबर:, कैलास: स्थानमलका पूर्विमानंतु पुष्करम्।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 344 |