निषध
निषध देश का प्रशासन राजा नल द्वारा संचालित किये जाने का वर्णन महाभारत में है। नल के पिता वीरसेन को भी निषध का राजा बताया गया है-
'निषधेतु महीपालो वीरसेन इति श्रुता तस्य पुत्रोऽभद्रस्मान्ना नलो धर्माणंकोविद:', ब्रह्मण्योवेदविच्छूरो निषधेषु महीपति:'[1]
स्थिति
ग्वालियर के निकट नलपुर नामक स्थान को परम्परा से राजा नल की राजधानी माना जाता है और निषध देश को ग्वालियर के पार्श्ववर्ती प्रदेश में ही मानना उचित होगा। विष्णुपुराण[2] में शायद निषध देश को नैषध कहा गया है-
'नैषध नैमिषक मणिधान्यकर्वशा भोक्ष्यन्ति'
इससे सूचित होता है कि संभवत: पूर्व गुप्त काल में नैषध या निषध पर मणिधान्यकों का आधिपत्य था। निषध देश का निषादों से भी संबंध हो सकता है, जो संभवत: किसी अनार्य जाति के लोग थे।
विस्तार
महाभारत के वर्णनानुसार हेमकूट पर्वत के उत्तर की ओर सहस्रों योजनों तक निषध पर्वत की श्रेणी पूर्व पश्चिम समुद्र तक फैली हुई है- 'हिमवान् हेमकूटश्च निषधश्च नगोत्तम:' भीष्मपर्व[3]
श्री चि.वि. वैद्य का अनुमान है कि यह पर्वत वर्तमान अलताई पर्वत श्रेणी का ही प्राचीन भारतीय नाम है। हेमकूट और निषध पर्वत के बीच के भाग का नाम 'हरिवर्ष' कहा गया है। महाभारत के वर्णन में निषध पर नाग जाति का निवास माना गया है-
'सर्पानागाश्च निषधे गोकर्ण च तपोवनम्'[4]
- विष्णुपुराण[5] में भी शायद इसी पर्वत का उल्लेख है-
'हिमवान् हेमकूटश्च निषधश्चास्य दक्षिणे'
इसी को विष्णुपुराण[6] में निषद भी कहा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 502 |