ऋक्ष (पर्वत)
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
![]() |
एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- ऋक्ष (बहुविकल्पी) |
ऋक्ष विष्णुपुराण[1] के अनुसार सात कुलपर्वतों में से एक है[2]-
महेन्द्रो मलयः सह्मः शुक्तिमानृक्षपर्वतः विंध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः'।
- ऋक्ष पर्वत विंध्याचल की पूर्वी श्रेणियों का नाम है, जिनमें नर्मदा, ताप्ती और शोण आदि के स्त्रोत स्थित हैं। अमरकंटक इसी का भाग है-
पुरश्च पश्चाच्च तथा महानदी तमृक्षवंतं गिरिमेत्य नर्मदा'।[3]
- स्कंदपुराण में भी नर्मदा का उद्भव ऋक्ष पर्वत से माना गया है।
- कालिदास ने ऋक्ष या ऋक्षवान् का नर्मदा के प्रसंग में उल्लेख किया है[2]-
निःशेष विक्षालित धातुनापि वप्रकिया मृक्षवत्स्तटेषु, नीलोर्ध्व रेखा शवलेन शंसन् दंतद्वयेनाश्मविकुंठितेन'।[4]
- विष्णुपुराण[5] में तापी, पयोष्णी और निर्विध्या को ऋक्ष पर्वत से निस्सृत माना गया है-
तापी पयोष्णी निर्विंध्या प्रमुखा ऋक्षसम्भवाः'।
- श्रीमद्भागवतपुराण[6] में भी ऋक्ष का उल्लेख है-
विन्ध्यः शुक्तिमानृक्षगिरिः पारियात्रो दोणश्चित्रकूटो गोवर्धनो रैवतकः'।
- ऋक्ष नाम महाभारतकालीन जनश्रुति में ऋक्षों या रीछों के कारण ही संभव हुआ होगा[2]-
ऋक्षेः सम्वर्धितो विप्र ऋक्षवत्यथ पर्वते'।[7]
- सम्भव है श्रीराम का जिन ऋक्षों ने रावण के विरुद्ध युद्ध में साथ दिया था, वे ऋक्ष पर्वत के ही निवासी थे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुपुराण 2, 3
- ↑ इस तक ऊपर जायें: 2.0 2.1 2.2 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 105 |
- ↑ महाभारत शांति पर्व 52, 32
- ↑ रघुवंश 5, 44
- ↑ विष्णुपुराण 2,3,11
- ↑ श्रीमद्भागवतपुराण 5,19,16
- ↑ महाभारत 46,76