महाश्रम का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। यह महाभारतकालीन एक तीर्थ का नाम है। महाभारत अनुशासन पर्व के उल्लेखानुसार सप्तगंग, त्रिगंग, और इन्द्रमार्ग में पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य यदि पुनर्जन्म लेता है तो उसे अमृत भोजन मिलता है।[1] महाश्रम तीर्थ में स्नान करके प्रतिदिन पवित्र भाव से अग्निहोत्र करते हुए जो एक महीने तक उपवास करता है, वह उतने ही समयमें सिद्ध हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 85 |
- ↑ अर्थात वह देवता हो जाता है।
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