कुशावर्त का उल्लेख महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार कुशावर्त हरिद्वार और कनखल के निकट एक तीर्थ स्थान है-
'गंगाद्वारे कशावर्ते नीलपर्वते तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्मा दिवंव्रजेत'[1]
- अनुमान किया जाता है कि कुशावर्त, हरिद्वार व गंगा का वर्तमान 'कुशाघाट' हो सकता है।
- कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफ़ी मनोरंजक है।
- मान्यता है कि ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी।
- गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया।
- बंधन में बँध जाने के बाद से ही इस कुंड में हमेशा जल भरा रहने लगा।
- इस जलकुंड को ही 'कुशावर्त तीर्थ' के नाम से जाना जाता है।
- कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही-स्नान के लिए आते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, अनुशासनपर्व 25, 13.