महाभारत, सभापर्व[1] दाक्षिणात्यपाठ के अनुसार अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में अर्जुन हिरण्यकवर्ष पहुचे थे।
- यह हिरम्यकवर्ष के उत्तर में स्थित था जिससे यह भीष्मपर्व[2] में वर्णित हिरण्मयवर्ष का ही पर्याय जान पड़ता है-
‘सश्वेतं पर्वतं राजन् समतिकम्य पांडव:,
वर्षं हिरण्यकं नाम विवेशाथ महीपते।
स तु देशेषुरम्येषुगन्तुं तत्रोपचकमे,
मध्ये प्रासादवृन्देषु नक्षत्राणां शशी यथा।
महापथेषु राजेन्द्रसवतोयान्तमर्जुनम् प्रासादवरश्रृंगस्था:,
परया वीर्यशोभया,
ददृशुस्ताः स्त्रियः सर्वाः पार्थमात्मयशस्करम्’।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख