"जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै -सूरदास": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " खरीद" to " ख़रीद") |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
यह जापै<ref>जिसके लिए</ref> लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै।<ref>हृदय में न आएगा</ref> | यह जापै<ref>जिसके लिए</ref> लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै।<ref>हृदय में न आएगा</ref> | ||
दाख छांडि कैं कटुक निबौरी<ref>नींम का फल</ref> को अपने मुख खैहै॥ | दाख छांडि कैं कटुक निबौरी<ref>नींम का फल</ref> को अपने मुख खैहै॥ | ||
मूरी<ref>मूली</ref> के पातन के केना<ref>अनाज के रूप में साग-भाजी की कीमत, जिसे देहात में कहीं-कहीं देकर मामूली तरकारियां | मूरी<ref>मूली</ref> के पातन के केना<ref>अनाज के रूप में साग-भाजी की कीमत, जिसे देहात में कहीं-कहीं देकर मामूली तरकारियां ख़रीदते थे</ref> को मुकताहल<ref>मोती</ref> दैहै। | ||
सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन<ref>सत्य, रज और तमोगुण से रहित निराकार ब्रह्म</ref> निरबैहै॥ | सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन<ref>सत्य, रज और तमोगुण से रहित निराकार ब्रह्म</ref> निरबैहै॥ | ||
</poem> | </poem> |
14:28, 21 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
| ||||||||||||||||||||
|
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |