"जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै -सूरदास": अवतरणों में अंतर

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यह जापै<ref>जिसके लिए</ref> लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै।<ref>हृदय में न आएगा</ref>
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दाख छांडि कैं कटुक निबौरी<ref>नींम का फल</ref> को अपने मुख खैहै॥
दाख छांडि कैं कटुक निबौरी<ref>नींम का फल</ref> को अपने मुख खैहै॥
मूरी<ref>मूली</ref> के पातन के केना<ref>अनाज के रूप में साग-भाजी की कीमत, जिसे देहात में कहीं-कहीं देकर मामूली तरकारियां खरीदते थे</ref> को मुकताहल<ref>मोती</ref> दैहै।
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सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन<ref>सत्य, रज और तमोगुण से रहित निराकार ब्रह्म</ref>  निरबैहै॥  
सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन<ref>सत्य, रज और तमोगुण से रहित निराकार ब्रह्म</ref>  निरबैहै॥  
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14:28, 21 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

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जोग ठगौरी ब्रज न बिकहै -सूरदास
सूरदास
सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

जोग ठगौरी[1] ब्रज न बिकैहै।
यह ब्योपार तिहारो ऊधौ, ऐसोई फिरि जैहै॥[2]
यह जापै[3] लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै।[4]
दाख छांडि कैं कटुक निबौरी[5] को अपने मुख खैहै॥
मूरी[6] के पातन के केना[7] को मुकताहल[8] दैहै।
सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन[9] निरबैहै॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ठगी का सौदा
  2. योंही बिना बेचे वापस ले जाना होगा
  3. जिसके लिए
  4. हृदय में न आएगा
  5. नींम का फल
  6. मूली
  7. अनाज के रूप में साग-भाजी की कीमत, जिसे देहात में कहीं-कहीं देकर मामूली तरकारियां ख़रीदते थे
  8. मोती
  9. सत्य, रज और तमोगुण से रहित निराकार ब्रह्म

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