"अंखियां हरि-दरसन की भूखी -सूरदास": अवतरणों में अंतर
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अवधि<ref>नियत समय।</ref> गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।<ref>दुःख से पछताई खीजी।</ref> | अवधि<ref>नियत समय।</ref> गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।<ref>दुःख से पछताई खीजी।</ref> | ||
अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥<ref>दुःखित हुई।</ref> | अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥<ref>दुःखित हुई।</ref> | ||
बारक<ref>एक बार।</ref> वह मुख फेरि | बारक<ref>एक बार।</ref> वह मुख फेरि दिखावहु दुहि पय पिवत पतूखी।<ref>पत्तेश का छोटा-सा दाना</ref> | ||
सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता | सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता है सूखी॥ | ||
07:26, 12 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |