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*क्षुरमाली समुद्र में ही मूल्यवान [[हीरा|हीरे]] की उत्पत्ति भी कही गई है।
 
*क्षुरमाली समुद्र में ही मूल्यवान [[हीरा|हीरे]] की उत्पत्ति भी कही गई है।
 
*डॉ. मोतीचंद के मत में '[[फ़ारस की खाड़ी]]' के समुद्र को पाली जातकों में 'क्षुरमाल' (या 'क्षुरमाली') कहा गया है, किंतु जातक का वर्णन काल्पनिक तथा अतिरंजित जान पड़ता है तथा प्राचीन काल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांच कथाओं पर आधृत प्रतीत होता है।
 
*डॉ. मोतीचंद के मत में '[[फ़ारस की खाड़ी]]' के समुद्र को पाली जातकों में 'क्षुरमाल' (या 'क्षुरमाली') कहा गया है, किंतु जातक का वर्णन काल्पनिक तथा अतिरंजित जान पड़ता है तथा प्राचीन काल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांच कथाओं पर आधृत प्रतीत होता है।
*जातक कथाओं के काल में (पाँचवी शती ई.) 'भृगुकच्छ' अथवा 'भड़ौंच' के व्यापारीगण प्राय: 'यवद्वीप' (जावा) तथा उसके निकटवर्ती [[द्वीप|द्वीपों]] में आते-जाते रहते थे।
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*जातक कथाओं के काल में (पाँचवी शती ई.) 'भृगुकच्छ' अथवा 'भड़ौंच' के व्यापारीगण प्राय: 'यवद्वीप' ([[जावा द्वीप|जावा]]) तथा उसके निकटवर्ती [[द्वीप|द्वीपों]] में आते-जाते रहते थे।
 
*शूर्पारक जातक में इसी मार्ग में पड़ने वाले समुद्रों का काल्पनिक एवं अतिरंजित वर्णन है।
 
*शूर्पारक जातक में इसी मार्ग में पड़ने वाले समुद्रों का काल्पनिक एवं अतिरंजित वर्णन है।
 
*क्षुरमाली के अतिरिक्त इस संदर्भ में '[[अग्निमाली |अग्निमाली]]', '[[कुशमाल]]', '[[नलमाली]]' और '[[दधिमाली]]' आदि समुद्रों का भी रोमांचकारी वृत्तांत है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=250|url=}}</ref>
 
*क्षुरमाली के अतिरिक्त इस संदर्भ में '[[अग्निमाली |अग्निमाली]]', '[[कुशमाल]]', '[[नलमाली]]' और '[[दधिमाली]]' आदि समुद्रों का भी रोमांचकारी वृत्तांत है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=250|url=}}</ref>

06:54, 9 अप्रैल 2014 का अवतरण

क्षुरमाली 'शूर्पारक जातक' में वर्णित एक समुद्र का नाम है। इस समुद्र का वर्णन, जो अधिकांश में कल्पना रंजित है, इस प्रकार है-

'भरुकच्छापयातानं दणिजानंधनेसिनं, नवाय विप्पनट्टाय खुरमालीति युच्चतीति’ ('भरुकच्छात् प्रयातानां वणिजां धनैषिणाम्, नावा विप्रणष्टया क्षुरमालीत उच्यते')

अर्थात 'भरुकच्छ' (भड़ौंच) से जहाज़ पर निकले हुए धनायी वणिकों को विदित हो कि इस (समुद्र) का नाम 'क्षुरमाली' है।

  • इससे पूर्व इसी संदर्भ में वणिक पोत का 'भृगुकच्छ' से चलकर 'चार मारा' तक समुद्र में यात्रा करने के पश्चात क्षुरमाली समुद्र में पहुँचने का वर्णन है।
  • इस संदर्भ में मनुष्य के समान नासिका वाली तथा छुरे के समान नासिका वाली मछलियों का पानी में डूबने-उतरने का वर्णन है।
  • क्षुरमाली समुद्र में ही मूल्यवान हीरे की उत्पत्ति भी कही गई है।
  • डॉ. मोतीचंद के मत में 'फ़ारस की खाड़ी' के समुद्र को पाली जातकों में 'क्षुरमाल' (या 'क्षुरमाली') कहा गया है, किंतु जातक का वर्णन काल्पनिक तथा अतिरंजित जान पड़ता है तथा प्राचीन काल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांच कथाओं पर आधृत प्रतीत होता है।
  • जातक कथाओं के काल में (पाँचवी शती ई.) 'भृगुकच्छ' अथवा 'भड़ौंच' के व्यापारीगण प्राय: 'यवद्वीप' (जावा) तथा उसके निकटवर्ती द्वीपों में आते-जाते रहते थे।
  • शूर्पारक जातक में इसी मार्ग में पड़ने वाले समुद्रों का काल्पनिक एवं अतिरंजित वर्णन है।
  • क्षुरमाली के अतिरिक्त इस संदर्भ में 'अग्निमाली', 'कुशमाल', 'नलमाली' और 'दधिमाली' आदि समुद्रों का भी रोमांचकारी वृत्तांत है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 250 |

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