अग्निमाली

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अग्निमाली शूर्पारक-जातक में वर्णित एक सागर-

'यथा अग्गीव सुरियो व समुद्दोपति दिस्सति,

सुप्पारकं तं पुच्छाम समुद्दो कतमो अयंति।
भरुकच्छापयातानं वणि-जानं धनेसिनं,

नावाय विप्पनट्ठाय अग्गिमालीति वुच्चतीति।'

  • अर्थात् जिस तरह अग्नि या सूर्य दिखाई देता है वैसा ही यह समुद्र है; शूर्पारक, हम तुमसे पूछते हैं कि यह कौन-सा समुद्र है?
  • भरुकच्छ से जहाज़ पर निकले हुए धनार्थी वणिकों को विदित हो कि यह अग्निमाली नामक समुद्र है।
  • इस प्रसंग के वर्णन से यह भी सूचित होता है कि उस समय के नाविकों के विचार में इस समुद्र से स्वर्ण की उत्पत्ति होती थी।
  • अग्निमाली समुद्र कौन-सा था, यह कहना कठिन है।
  • डॉ. मोतीचंद के अनुसार यह लालसागर या रेड सी का ही नाम है किंतु वास्तव में शूर्पारक-जातक का यह प्रसंग जिसमें क्षुरमाली, नलमाली, दधिमाली आदि अन्य समुद्रों के इसी प्रकार के वर्णन हैं, बहुत कुछ काल्पनिक तथा पूर्व-बुद्धकाल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांस-कथाओं पर आधारित प्रतीत होता है।
  • भरुकच्छ या भडौंच से चल कर नाविक लोग चार मास तक समुद्र पर घूमने के पश्चात् इन समुद्रों तक पहुंचे थे।
  • अन्य समुद्रों के नाम जो वणिकों को मिले थे, वे हैं-
  1. क्षुरमाली
  2. नलमाली
  3. कुशमाल
  4. दधिमाली
  5. बड़वामुख

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 10 |


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