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*तंगण देश के पार्श्व में परतंगण देश की | *तंगण देश के पार्श्व में परतंगण देश की स्थिति रही होगी। [[वासुदेव शरण अग्रवाल|श्री वासुदेवशरण अग्रवाल]] के मत में कुल्लू-[[कांगड़ा]] के पूरब का भोट क्षेत्र ही तंगण जाति का इलाका था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=385|url=}}</ref> | ||
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07:10, 25 जून 2016 के समय का अवतरण
तंगण | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- तंगण (बहुविकल्पी) |
तंगण देश का नाम यहाँ रहने वाली तंगण जाति के नाम हुआ था। तंगणों का उल्लेख महाभारत, भीष्मपर्व में हुआ है-
'मारुता येनुकाश्चैव तंगणा: परतंगणा: बाह्निकास्तित्तिराश्चैव चौला: पांड्याश्च भारत'[1]
- उपर्युक्त श्लोक में तंगण जाति के उल्लेख से ज्ञात होता है कि तंगण देश भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा के परे स्थित रहा होगा।
- महाभारत, सभापर्व[2] में भी तंगण और परतंगण लोगों का उल्लेख है-
'पारदाश्च पुलिंदाश्य तंगणा: परतंगणा:।'
- उपर्युक्त श्लोक में तंगणों को मेरु और मंदिर पर्वतों के बीच में बहने वाली शैलोदा नदी के प्रदेश में बताया गया है। शैलोदा वर्तमान खोतन नदी है।
- तंगण देश के पार्श्व में परतंगण देश की स्थिति रही होगी। श्री वासुदेवशरण अग्रवाल के मत में कुल्लू-कांगड़ा के पूरब का भोट क्षेत्र ही तंगण जाति का इलाका था।[3]
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