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इन्द्र ने श्रुतवती को पाँच बेर उबालने के लिए दिए और स्वयं निकटस्थ इन्द्रतीर्थ पर मंत्रपाठ करने की बात कहकर चले गए। ब्रह्मचारिणी श्रुतवती ने उन पाँच बेरों को पात्र में रखकर उबालने के लिए [[अग्नि]] पर रख दिया। किन्तु पूरा दिन ही बीत गया, लेकिन बेर नहीं उबले। संध्या होने को आ गई। ईधन भी श्रुतवती के पास समाप्त हो गया। तब उसने अग्नि में ईधन की जगह अपना पैर अग्नि को समर्पित कर दिया। इस पर इन्द्र प्रकट हुए और उन्होंने उसे इस शरीर को त्याग कर इन्द्रलोक में ले जाने का प्रस्ताव किया। श्रुतवती राजी हो गई।
इन्द्र ने श्रुतवती को पाँच बेर उबालने के लिए दिए और स्वयं निकटस्थ इन्द्रतीर्थ पर मंत्रपाठ करने की बात कहकर चले गए। ब्रह्मचारिणी श्रुतवती ने उन पाँच बेरों को पात्र में रखकर उबालने के लिए [[अग्नि]] पर रख दिया। किन्तु पूरा दिन ही बीत गया, लेकिन बेर नहीं उबले। संध्या होने को आ गई। ईधन भी श्रुतवती के पास समाप्त हो गया। तब उसने अग्नि में ईधन की जगह अपना पैर अग्नि को समर्पित कर दिया। इस पर इन्द्र प्रकट हुए और उन्होंने उसे इस शरीर को त्याग कर इन्द्रलोक में ले जाने का प्रस्ताव किया। श्रुतवती राजी हो गई।
;वरदान प्राप्ति
;वरदान प्राप्ति
इन्द्र ने श्रुतवती से कहा, यह तीर्थ 'बदरपाचन' विश्व में एक श्रेष्ठ तीर्थ होगा।' उन्होंने उसे वह श्रेष्ठ वरदान भी दिया, जिसे महादेव ने अरुंधती को प्रदान किया था, कि जो भी इस [[तीर्थ]] में एक रात्रि वास करेगा और ध्यानावस्थित हो [[स्नान]] करेगा, वह मृत्यु के उपरान्त उन देवलोकों को प्राप्त कर सकेगा, जो कि दुर्लभ हैं। श्रुतवती ने [[मानव शरीर]] त्याग दिया और [[इन्द्र]] के साथ स्वर्गलोक में उनकी पत्नी बनी। तभी से बदरपाचन एक महान तीर्थ स्थल बना।<ref>[[महाभारत]], शाल्यपर्व, अध्याय 48</ref>
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11:16, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

बदरपाचन सरस्वती नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ था। ऐसी मान्यता है कि ऋषि भारद्वाज की परम सुन्दर पुत्री 'श्रुतवती' ने यहाँ इन्द्र को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। तब परीक्षा लेने के लिए इन्द्र वहाँ ब्राह्मण वशिष्ठ का वेश धारण करके आए और श्रुतवती को बताया कि तप से सब कुछ सम्भव है।

इन्द्र की परीक्षा

इन्द्र ने श्रुतवती को पाँच बेर उबालने के लिए दिए और स्वयं निकटस्थ इन्द्रतीर्थ पर मंत्रपाठ करने की बात कहकर चले गए। ब्रह्मचारिणी श्रुतवती ने उन पाँच बेरों को पात्र में रखकर उबालने के लिए अग्नि पर रख दिया। किन्तु पूरा दिन ही बीत गया, लेकिन बेर नहीं उबले। संध्या होने को आ गई। ईधन भी श्रुतवती के पास समाप्त हो गया। तब उसने अग्नि में ईधन की जगह अपना पैर अग्नि को समर्पित कर दिया। इस पर इन्द्र प्रकट हुए और उन्होंने उसे इस शरीर को त्याग कर इन्द्रलोक में ले जाने का प्रस्ताव किया। श्रुतवती राजी हो गई।

वरदान प्राप्ति

इन्द्र ने श्रुतवती से कहा, यह तीर्थ 'बदरपाचन' विश्व में एक श्रेष्ठ तीर्थ होगा।' उन्होंने उसे वह श्रेष्ठ वरदान भी दिया, जिसे महादेव ने अरुंधती को प्रदान किया था, कि जो भी इस तीर्थ में एक रात्रि वास करेगा और ध्यानावस्थित हो स्नान करेगा, वह मृत्यु के उपरान्त उन देवलोकों को प्राप्त कर सकेगा, जो कि दुर्लभ हैं। श्रुतवती ने मानव शरीर त्याग दिया और इन्द्र के साथ स्वर्गलोक में उनकी पत्नी बनी। तभी से बदरपाचन एक महान् तीर्थ स्थल बना।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 524 |

  1. महाभारत, शाल्यपर्व, अध्याय 48

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