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'''कुशमाल''' शूर्पारकजातक में वर्णित एक पौराणिक [[समुद्र]] का नाम है, जहाँ भृगकच्छ के व्यापारी एक बार जा पहुँचे थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=211|url=}}</ref>
'''कुशमाल''' शूर्पारकजातक में वर्णित एक पौराणिक [[समुद्र]] का नाम है, जहाँ [[भरुकच्छ]] के व्यापारी एक बार जा पहुँचे थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=211|url=}}</ref>


*शूर्पारकजातक में इस समुद्र का वर्णन इस प्रकार है-
*शूर्पारकजातक में इस समुद्र का वर्णन इस प्रकार है-
<blockquote>'यथा कुसो व सस्सो व समुद्दोपति दिस्सति’</blockquote>
<blockquote>'यथा कुसो व सस्सो व समुद्दोपति दिस्सति’</blockquote>


अर्थात् यह समुद्र कुश या अनाज के तृणों की भांति [[हरा रंग|हरा]] दिखाई देता है।
अर्थात् यह समुद्र [[कुश]] या अनाज के तृणों की भांति [[हरा रंग|हरा]] दिखाई देता है।
*इस समुद्र में नीलमणि उत्पन्न होती थी।
*इस समुद्र में नीलमणि उत्पन्न होती थी।



13:03, 26 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

कुशमाल शूर्पारकजातक में वर्णित एक पौराणिक समुद्र का नाम है, जहाँ भरुकच्छ के व्यापारी एक बार जा पहुँचे थे।[1]

  • शूर्पारकजातक में इस समुद्र का वर्णन इस प्रकार है-

'यथा कुसो व सस्सो व समुद्दोपति दिस्सति’

अर्थात् यह समुद्र कुश या अनाज के तृणों की भांति हरा दिखाई देता है।

  • इस समुद्र में नीलमणि उत्पन्न होती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 211 |

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