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'''अवीचि''' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार एक नरक है। यह सात प्रधान नरकों में से पाँचवाँ है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=36|url=}}</ref> झूठे गवाह तथा अनुचित दान देने वाले लोग इस नरक के भागी होते हैं।<ref>[[वायुपुराण]] 101.179; [[भागवतपुराण]] 5.26.7,28; [[ब्रह्मांडपुराण]] 4.2.182,185</ref> अवीचि 28 नरकों में से एक गिना जाता है।
'''अवीचिमान''' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार एक [[नरक]] है। यह सात प्रधान नरकों में से पाँचवाँ है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=36|url=}}</ref> झूठे गवाह तथा अनुचित दान देने वाले लोग इस नरक के भागी होते हैं।<ref>[[वायुपुराण]] 101.179; [[भागवतपुराण]] 5.26.7,28; [[ब्रह्मांडपुराण]] 4.2.182,185</ref> अवीचि 28 नरकों में से एक गिना जाता है।


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*झूठ बोलने वाला, झूठी गवाही देने वाला, व्यापार में अथवा दान देने में झूठ बोलने वाला “अवीचिमान” नरक में जाता है वहाँ उसे सौ योजन ऊँचे पहाड़ के शिखर से सिर के बल गिराया जाता है। इस नरक की पथरीली भूमि जल के समान जान पड़ती है इसलिए इसका नाम “अवीचिमान्” है।
*नरक लोक में [[सूर्य देवता|सूर्य]] के पुत्र “[[यमराज|यम]]” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है<ref>गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं</ref>-
 
 
'''अवीचि''' ([[विशेषण]]) [नञ्‌ बहुव्रीहि समास]
 
*तरंगशून्य-चिः ([[पुल्लिंग]]) नरक-विशेष।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=128|url=|ISBN=}}</ref>
 
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06:04, 22 मई 2024 के समय का अवतरण

अवीचिमान पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक नरक है। यह सात प्रधान नरकों में से पाँचवाँ है।[1] झूठे गवाह तथा अनुचित दान देने वाले लोग इस नरक के भागी होते हैं।[2] अवीचि 28 नरकों में से एक गिना जाता है।

  • झूठ बोलने वाला, झूठी गवाही देने वाला, व्यापार में अथवा दान देने में झूठ बोलने वाला “अवीचिमान” नरक में जाता है वहाँ उसे सौ योजन ऊँचे पहाड़ के शिखर से सिर के बल गिराया जाता है। इस नरक की पथरीली भूमि जल के समान जान पड़ती है इसलिए इसका नाम “अवीचिमान्” है।
  • नरक लोक में सूर्य के पुत्र “यम” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है[3]-


अवीचि (विशेषण) [नञ्‌ बहुव्रीहि समास]

नरक के नाम
क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम
1. तामिस्र 2. अन्धतामिस्र
3. रौरव 4. महारौरव
5. कुम्भी पाक 6. कालसूत्र
7. असिपत्रवन 8. सूकर मुख
9. अन्ध कूप 10. कृमि भोजन
11. सन्दंश 12. तप्तसूर्मि
13. वज्रकंटक शाल्मली 14. वैतरणी
15. पूयोद 16. प्राण रोध
17. विशसन 18. लालाभक्ष
19. सारमेयादन 20. अवीचि
21. अयःपान 22. क्षारकर्दम
23. रक्षोगणभोजन 24. शूलप्रोत
25. द्वन्दशूक 26. अवटनिरोधन
27. पर्यावर्तन 28. सूची मुख



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प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 36 |
  2. वायुपुराण 101.179; भागवतपुराण 5.26.7,28; ब्रह्मांडपुराण 4.2.182,185
  3. गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं
  4. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 128 |

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