"अग्निमाली": अवतरणों में अंतर

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*शूर्पारक-जातक में वर्णित एक [[सागर]]- <poem>
'''अग्निमाली''' शूर्पारक-जातक में वर्णित एक [[सागर]]-  
'यथा अग्गीव सुरियो व समुद्दोपति दिस्सति,  
<poem><blockquote>'यथा अग्गीव सुरियो व समुद्दोपति दिस्सति,  
सुप्पारकं तं पुच्छाम समुद्दो कतमो अयंति।  
सुप्पारकं तं पुच्छाम समुद्दो कतमो अयंति।  
भरुकच्छापयातानं वणि-जानं धनेसिनं,
भरुकच्छापयातानं वणि-जानं धनेसिनं,
नावाय विप्पनट्ठाय अग्गिमालीति वुच्चतीति।'</poem>  
नावाय विप्पनट्ठाय अग्गिमालीति वुच्चतीति।'</blockquote></poem>  
*अर्थात् जिस तरह अग्नि या सूर्य दिखाई देता है वैसा ही यह समुद्र है; शूर्पारक, हम तुमसे पूछते हैं कि यह कौन-सा समुद्र है?  
*अर्थात् जिस तरह [[अग्नि |अग्नि]] या [[सूर्य]] दिखाई देता है वैसा ही यह [[समुद्र]] है; शूर्पारक, हम तुमसे पूछते हैं कि यह कौन-सा समुद्र है?  
*भरुकच्छ से जहाज पर निकले हुए धनार्थी वणिकों को विदित हो कि यह अग्निमाली नामक समुद्र है।  
*[[भरुकच्छ]] से जहाज़ पर निकले हुए धनार्थी वणिकों को विदित हो कि यह '''अग्निमाली नामक समुद्र''' है।  
*इस प्रसंग के वर्णन से यह भी सूचित होता है कि उस समय के नाविकों के विचार में इस समुद्र से स्वर्ण की उत्पत्ति होती थी।  
*इस प्रसंग के वर्णन से यह भी सूचित होता है कि उस समय के नाविकों के विचार में इस समुद्र से [[स्वर्ण]] की उत्पत्ति होती थी।  
*अग्निमाली समुद्र कौन-सा था, यह कहना कठिन है।  
*अग्निमाली समुद्र कौन-सा था, यह कहना कठिन है।  
*डॉ. मोतीचंद के अनुसार यह लालसागर या रेड सी का ही नाम हे किंतु वास्तव में शूर्पारक-जातक का यह प्रसंग जिसमें क्षुरमाली, नलमाली, दधिमाल आदि अन्य समुद्रों के इसी प्रकार के वर्णन हैं, बहुत कुछ काल्पनिक तथा पूर्व-बुद्धकाल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांस-कथाओं पर आधारित प्रतीत होता है।  
*डॉ. मोतीचंद के अनुसार यह '''लालसागर''' या '''रेड सी''' का ही नाम है किंतु वास्तव में '''शूर्पारक-जातक''' का यह प्रसंग जिसमें [[क्षुरमाली]], [[नलमाली]], [[दधिमाली]] आदि अन्य समुद्रों के इसी प्रकार के वर्णन हैं, बहुत कुछ काल्पनिक तथा पूर्व-बुद्धकाल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांस-कथाओं पर आधारित प्रतीत होता है।  
*भरुकच्छ या भडौंच से चल कर नाविक लोग चार मास तक [[समुद्र]] पर घूमने के पश्चात् इन समुद्रों तक पहुंचे थे।<ref>दे. क्षुरमाली, बड़वामुख, दधिमाल, कुशमाल, नलमाली</ref>
*[[भरुकच्छ]] या भडौंच से चल कर नाविक लोग चार [[मास]] तक [[समुद्र]] पर घूमने के पश्चात् इन समुद्रों तक पहुंचे थे।
*अन्य समुद्रों के नाम जो वणिकों को मिले थे, वे हैं-
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13:23, 26 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

अग्निमाली शूर्पारक-जातक में वर्णित एक सागर-

'यथा अग्गीव सुरियो व समुद्दोपति दिस्सति,

सुप्पारकं तं पुच्छाम समुद्दो कतमो अयंति।
भरुकच्छापयातानं वणि-जानं धनेसिनं,

नावाय विप्पनट्ठाय अग्गिमालीति वुच्चतीति।'

  • अर्थात् जिस तरह अग्नि या सूर्य दिखाई देता है वैसा ही यह समुद्र है; शूर्पारक, हम तुमसे पूछते हैं कि यह कौन-सा समुद्र है?
  • भरुकच्छ से जहाज़ पर निकले हुए धनार्थी वणिकों को विदित हो कि यह अग्निमाली नामक समुद्र है।
  • इस प्रसंग के वर्णन से यह भी सूचित होता है कि उस समय के नाविकों के विचार में इस समुद्र से स्वर्ण की उत्पत्ति होती थी।
  • अग्निमाली समुद्र कौन-सा था, यह कहना कठिन है।
  • डॉ. मोतीचंद के अनुसार यह लालसागर या रेड सी का ही नाम है किंतु वास्तव में शूर्पारक-जातक का यह प्रसंग जिसमें क्षुरमाली, नलमाली, दधिमाली आदि अन्य समुद्रों के इसी प्रकार के वर्णन हैं, बहुत कुछ काल्पनिक तथा पूर्व-बुद्धकाल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांस-कथाओं पर आधारित प्रतीत होता है।
  • भरुकच्छ या भडौंच से चल कर नाविक लोग चार मास तक समुद्र पर घूमने के पश्चात् इन समुद्रों तक पहुंचे थे।
  • अन्य समुद्रों के नाम जो वणिकों को मिले थे, वे हैं-
  1. क्षुरमाली
  2. नलमाली
  3. कुशमाल
  4. दधिमाली
  5. बड़वामुख

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 10 |


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