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परुष्णी तीर्थ का वर्णन ब्रह्मपुराण में हुआ है। ऋषि अंगिरा का विवाह आत्रेयी नामक कन्या के साथ हुआ था। आत्रेयी ने नदी का रूप लेकर अंगिरा को डुबो लिया और स्वयं गंगा में मिल गईं। उसी के नाम पर 'परुष्णी तीर्थ' स्थापित हुआ।

  • कथा के अनुसार ऋषि अत्रि ब्रह्मवेत्ता थे।
  • त्रिदेव की आराधना कर उन्होंने विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा से वर मांगने का अधिकार प्राप्त किया था।
  • सोच-समझकर उन्होंने त्रिदेव को उनके पुत्र रूप में जन्म लेने के लिए राजी कर लिया।
  • अत्रि ने एक कन्या भी उनसे मांगी, और ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने तथास्तु कह दिया।
  • फलत: दत्त, सोम तथा दुर्वासा और आत्रेयी नामक कन्या का जन्म हुआ।
  • आत्रेयी का विवाह ऋषि अंगिरा के साथ हो गया।
  • अंगिरा अग्नि से पैदा हुए थे, अत: स्वभाव से ही क्रोधी थे।
  • उनका पुत्र अंगिरस उन्हें शान्त करने में लगा रहता था।
  • अग्नि ने बहू से कहा, कि वह अंगिरा को जल में डुबाए।
  • आत्रेयी ने परुष्णी नदी का रूप धारण कर अंगिरा को डुबो लिया।
  • आत्रेयी और अंगिरा अब शान्त स्वभाव के हो गए, और परुष्णी गंगा में मिल गयी।
  • उसी नाम से 'परुष्णी तीर्थ' स्थापित हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मा पुराण, 144

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