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'''जारुधि प्रदेश''' संभवत: [[सरयू नदी]] का तटवर्ती प्रदेश था। [[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]]<ref>[[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 38</ref>, दक्षिणात्य पाठ में इस प्रदेश का उल्लेख आया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=363|url=}}</ref> | '''जारुधि प्रदेश''' संभवत: [[सरयू नदी]] का तटवर्ती प्रदेश था। [[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]]<ref>[[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 38</ref>, दक्षिणात्य पाठ में इस प्रदेश का उल्लेख आया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=363|url=}}</ref> | ||
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जारुधि प्रदेश संभवत: सरयू नदी का तटवर्ती प्रदेश था। महाभारत, सभापर्व[1], दक्षिणात्य पाठ में इस प्रदेश का उल्लेख आया है।[2]
- सभापर्व के उल्लेखानुसार भीष्म ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर विष्णु के अवतारों की कथा के वर्णन के प्रसंग में कहा है कि "श्रीरामचंद्रजी ने दस अश्वमेघों का अनुष्ठान करके जारुधि प्रदेश को निर्विध्न बना दिया था-
'दशाश्वमेघनाजह्ने जारुधिस्थान निरर्गलान्।'
- रामचंद्रजी के पूर्वज इक्ष्वाकु वंशीय नरेशों ने अश्वमेघ यज्ञ सरयू नदी के तट पर किए थे, जैसा कि रघुवंश[3] से भी ज्ञात होता है-
'जलानि या तीरनिखातयूपा वहत्योध्यामनुराजधानीम्, तुरंगमेधावभृयावतीर्णे रिक्ष्वाकुभि: पुण्यतरीकृतानि।'
- रामचंद्र जी ने भी पूर्व परम्परा के अनुकूल अश्वमेघ यज्ञ अपनी राजधानी अयोध्या के निकट सरयू तट पर ही संपादित किया था।
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