"अंधतामिस्र": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''अंधतामिस्र''' पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा हिन्दू मान...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''अंधतामिस्र''' पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार एक नरक का नाम है, जो इक्कीस बड़े नरकों में से दूसरा है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=5|url=}}</ref> | '''अंधतामिस्र''' पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार एक [[नरक]] का नाम है, जो इक्कीस बड़े नरकों में से दूसरा है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=5|url=}}</ref> | ||
*[[सांख्य दर्शन|सांख्य]] के अनुसार इच्छित बात के करने की अशक्ति को विपर्यय कहते हैं। इसके पाँच भेद बताये गए हैं और अंधतामिस्र या अभिनिवेश अंतिम है। | *[[सांख्य दर्शन|सांख्य]] के अनुसार इच्छित बात के करने की अशक्ति को विपर्यय कहते हैं। इसके पाँच भेद बताये गए हैं और अंधतामिस्र या अभिनिवेश अंतिम है। | ||
*पति को धोखा देने वाली स्त्री, किसी की स्त्री तथा उसकी सम्पत्ति का हरण करने वाला अंधतामिस्र नरक का भागी होता है।<ref>[[भागवतपुराण]] 3.30.28; 23; [[वायुपुराण]] 26.7.4</ref> | *पति को धोखा देने वाली स्त्री, किसी की स्त्री तथा उसकी सम्पत्ति का हरण करने वाला अंधतामिस्र नरक का भागी होता है।<ref>[[भागवतपुराण]] 3.30.28; 23; [[वायुपुराण]] 26.7.4</ref> | ||
*दूसरों को धोखा देने वाला मनुष्य “अन्धतामिस्र” नरक की वह यातनाएँ भोगता है, जिनके कारण वह अपनी सारी सुध-बुध खो बैठता है। उसकी बुद्धि में अन्धकार छा जाता है। | |||
*नरक लोक में [[सूर्य देवता|सूर्य]] के पुत्र “[[यमराज|यम]]” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है- | |||
<center> | |||
{| width="30%" class="bharattable-pink" | |||
|+नरक के नाम<ref>गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं</ref> | |||
|- | |||
! क्रम संख्या | |||
! नाम | |||
! क्रम संख्या | |||
! नाम | |||
|- | |||
|1. | |||
|[[तामिस्र]] | |||
|2. | |||
|[[अन्धतामिस्र]] | |||
|- | |||
|3. | |||
|[[रौरव]] | |||
|4. | |||
|[[महारौरव]] | |||
|- | |||
|5. | |||
|[[कुम्भी पाक]] | |||
|6. | |||
|[[कालसूत्र]] | |||
|- | |||
|7. | |||
|[[असिपत्रवन]] | |||
|8. | |||
|[[सूकर मुख]] | |||
|- | |||
|9. | |||
|[[अन्ध कूप]] | |||
|10. | |||
|[[कृमि भोजन]] | |||
|- | |||
|11. | |||
|[[सन्दंश]] | |||
|12. | |||
|[[तप्तसूर्मि]] | |||
|- | |||
|13. | |||
|[[वज्रकंटक शाल्मली]] | |||
|14. | |||
|[[वैतरणी नदी|वैतरणी]] | |||
|- | |||
|15. | |||
|[[पूयोद]] | |||
|16. | |||
|[[प्राण रोध]] | |||
|- | |||
|17. | |||
|[[विशसन]] | |||
|18. | |||
|[[लालाभक्ष]] | |||
|- | |||
|19. | |||
|[[सारमे पादन]] | |||
|20. | |||
|[[अवीचि]] | |||
|- | |||
|21. | |||
|[[अयःपान]] | |||
|22. | |||
|[[क्षारकर्दम]] | |||
|- | |||
|23. | |||
|[[रक्षोगणभोजन]] | |||
|24. | |||
|[[शूलप्रोत]] | |||
|- | |||
|25. | |||
|[[दन्दशूक]] | |||
|26. | |||
|[[अवटनिरोधन]] | |||
|- | |||
|27. | |||
|[[पर्यावर्तन]] | |||
|28. | |||
|[[सूची मुख]] | |||
|} | |||
</center> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पौराणिक स्थान}} | {{पौराणिक स्थान}} | ||
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]] | [[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:37, 23 नवम्बर 2017 का अवतरण
अंधतामिस्र पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक नरक का नाम है, जो इक्कीस बड़े नरकों में से दूसरा है।[1]
- सांख्य के अनुसार इच्छित बात के करने की अशक्ति को विपर्यय कहते हैं। इसके पाँच भेद बताये गए हैं और अंधतामिस्र या अभिनिवेश अंतिम है।
- पति को धोखा देने वाली स्त्री, किसी की स्त्री तथा उसकी सम्पत्ति का हरण करने वाला अंधतामिस्र नरक का भागी होता है।[2]
- दूसरों को धोखा देने वाला मनुष्य “अन्धतामिस्र” नरक की वह यातनाएँ भोगता है, जिनके कारण वह अपनी सारी सुध-बुध खो बैठता है। उसकी बुद्धि में अन्धकार छा जाता है।
- नरक लोक में सूर्य के पुत्र “यम” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है-
क्रम संख्या | नाम | क्रम संख्या | नाम |
---|---|---|---|
1. | तामिस्र | 2. | अन्धतामिस्र |
3. | रौरव | 4. | महारौरव |
5. | कुम्भी पाक | 6. | कालसूत्र |
7. | असिपत्रवन | 8. | सूकर मुख |
9. | अन्ध कूप | 10. | कृमि भोजन |
11. | सन्दंश | 12. | तप्तसूर्मि |
13. | वज्रकंटक शाल्मली | 14. | वैतरणी |
15. | पूयोद | 16. | प्राण रोध |
17. | विशसन | 18. | लालाभक्ष |
19. | सारमे पादन | 20. | अवीचि |
21. | अयःपान | 22. | क्षारकर्दम |
23. | रक्षोगणभोजन | 24. | शूलप्रोत |
25. | दन्दशूक | 26. | अवटनिरोधन |
27. | पर्यावर्तन | 28. | सूची मुख |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 5 |
- ↑ भागवतपुराण 3.30.28; 23; वायुपुराण 26.7.4
- ↑ गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं