"ऋक्षबिल": अवतरणों में अंतर

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*'विचिन्वन्तस्ततस्तत्र ददृशुर्विवृतं बिलम्, दुर्गमृक्षबलिं नाम दानवेनाभिरक्षितम्, क्षुत्पिपासापरीतासु श्रान्तास्तु सलिलार्थिन:'<ref>वाल्मीकि किष्किंधा 50, 6-7-8</ref> सीतान्वेषण करते समय वानरों ने भूख-प्यास से खिन्न होकर एक गुहा या बिल में से जलपक्षियों को निकलते देखकर वहाँ पानी का अनुमान किया था।  
सीतान्वेषण करते समय वानरों ने भूख-प्यास से खिन्न होकर एक गुहा या बिल में से जलपक्षियों को निकलते देखकर वहाँ पानी का अनुमान किया था। इसी गुहा को वाल्मीकि ने ऋक्षबिल कहकर वर्णन किया है। यहीं वानरों की स्वयंप्रभा नामक तपस्विनी से भेंट हुई थी।  
*इसी गुहा को वाल्मीकि ने ऋक्षबिल कहकर वर्णन किया है।  
<blockquote><poem>'विचिन्वन्तस्ततस्तत्र ददृशुर्विवृतं बिलम्,
*यहीं वानरों की स्वयंप्रभा नामक तपस्विनी से भेंट हुई थी।  
दुर्गमृक्षबलिं नाम दानवेनाभिरक्षितम्,
*ऋक्षबिल अथवा स्वयंप्रभागुहा का अभिज्ञान दक्षिण रेल के कलयनल्लूर स्टेशन से आधा मील पर स्थित पर्वत की 30 फुट गहरी गुफा से किया गया है।  
षुत्पिपासापरीतासु श्रान्तास्तु सलिलार्थिन:'<ref>वाल्मीकि किष्किंधा 50, 6-7-8</ref></poem></blockquote>
*[[रामचरित मानस|तुलसीरामायण]] में भी इस गुहा का सुन्दर वर्णन है-
ऋक्षबिल अथवा स्वयंप्रभागुहा का अभिज्ञान दक्षिण रेल के कलयनल्लूर स्टेशन से आधा मील पर स्थित पर्वत की 30 फुट गहरी गुफा से किया गया है।  
**'चढ़िगिरि शिखर चहूंदिशि देखा, भूमिविवर इक कौतुक पेखा। चक्रवाक बक हंस उड़ाहीं, बहुतक खग प्रविशहिं तेहि माहीं।'<ref>किष्किंधाकांड। स्वयंप्रभा गुहा।</ref>


[[रामचरित मानस|तुलसीरामायण]] में भी इस गुहा का सुन्दर वर्णन है-
:'चढ़िगिरि शिखर चहूंदिशि देखा, भूमिविवर इक कौतुक पेखा। चक्रवाक बक हंस उड़ाहीं, बहुतक खग प्रविशहिं तेहि माहीं।'<ref>किष्किंधाकांड। स्वयंप्रभा गुहा।</ref>


 
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11:14, 8 अगस्त 2012 का अवतरण

सीतान्वेषण करते समय वानरों ने भूख-प्यास से खिन्न होकर एक गुहा या बिल में से जलपक्षियों को निकलते देखकर वहाँ पानी का अनुमान किया था। इसी गुहा को वाल्मीकि ने ऋक्षबिल कहकर वर्णन किया है। यहीं वानरों की स्वयंप्रभा नामक तपस्विनी से भेंट हुई थी।

'विचिन्वन्तस्ततस्तत्र ददृशुर्विवृतं बिलम्,
दुर्गमृक्षबलिं नाम दानवेनाभिरक्षितम्,
षुत्पिपासापरीतासु श्रान्तास्तु सलिलार्थिन:'[1]

ऋक्षबिल अथवा स्वयंप्रभागुहा का अभिज्ञान दक्षिण रेल के कलयनल्लूर स्टेशन से आधा मील पर स्थित पर्वत की 30 फुट गहरी गुफा से किया गया है।

तुलसीरामायण में भी इस गुहा का सुन्दर वर्णन है-

'चढ़िगिरि शिखर चहूंदिशि देखा, भूमिविवर इक कौतुक पेखा। चक्रवाक बक हंस उड़ाहीं, बहुतक खग प्रविशहिं तेहि माहीं।'[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि किष्किंधा 50, 6-7-8
  2. किष्किंधाकांड। स्वयंप्रभा गुहा।

बाहरी कड़ियाँ

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