"त्रिगर्त": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:


इस वर्णन से प्रतीत होता है कि महाभारत काल में मत्स्य और त्रिगर्त पड़ोसी देश थे। संभव है कि उस समय त्रिगर्त का विस्तार उत्तरी [[राजस्थान]] तक रहा हो।
इस वर्णन से प्रतीत होता है कि महाभारत काल में मत्स्य और त्रिगर्त पड़ोसी देश थे। संभव है कि उस समय त्रिगर्त का विस्तार उत्तरी [[राजस्थान]] तक रहा हो।
*एक अन्य स्रोत के अनुसार [[पंजाब]] का [[जालंधर ज़िला]] ही प्राचीन त्रिगर्त है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=557, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 14: पंक्ति 16:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पौराणिक स्थान}}
{{पौराणिक स्थान}}
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:हिमाचल प्रदेश]]
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

06:53, 19 मई 2018 के समय का अवतरण

त्रिगर्त आधुनिक कांगड़ा का ही प्राचीन नाम है। 'त्रिगर्त' का शाब्दिक अर्थ है- 'तीन गह्वरों वाला प्रदेश'। यह स्थूल रूप से रावी, व्यास और सतलुज नदी की उद्गम घाटियों में स्थित प्रदेश का नाम था। इसमें कुल्लू का प्रदेश भी सम्मिलित था, जिसके कारण भुवनकोष में इस प्रदेश को 'पर्वताश्रयी' भी कहा गया है।

प्राचीनता

प्राचीन काल में त्रिगर्त नाम से विख्यात कांगड़ा हिमाचल की सबसे ख़ूबसूरत घाटियों में एक है। धौलाधर पर्वत श्रंखला से आच्छादित यह घाटी इतिहास और संस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। किसी समय में यह शहर चंद्र वंश की राजधानी थी। त्रिगर्त का उल्लेख 3,500 साल पहले वैदिक युग में मिलता है। पुराण, महाभारत और राजतरंगिणी में इस स्थान का ज़िक्र किया गया है।

महाभारत में उल्लेख

महाभारत तथा रघुवंश में उल्लिखित 'उत्सवसंकेत' नामक गणराज्यों की स्थिति इसी प्रदेश में थी। महाभारत, विराटपर्व[1] में मत्स्य देश पर त्रिगर्तराज सुशर्मा की चढ़ाई का विस्तृत वर्णन है। इन्होंने मत्स्य नरेश की गौवों का अपहरण किया था-

'एवं तैस्त्वभिनिर्याय मत्स्यराज्यस्य गोधने, त्रिगर्त गृंह्यमाणे तु गोपाला: प्रत्यषेधयन्'

इस वर्णन से प्रतीत होता है कि महाभारत काल में मत्स्य और त्रिगर्त पड़ोसी देश थे। संभव है कि उस समय त्रिगर्त का विस्तार उत्तरी राजस्थान तक रहा हो।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 415 |

  1. महाभारत, विराटपर्व 30, 31, 32, 33
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |

संबंधित लेख