"भृगुकच्छ": अवतरणों में अंतर
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*भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। | *भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। | ||
*भड़ौच प्राक् मौर्य काल का एक महत्त्वपूर्ण [[बन्दरगाह]] था। इसके बाद के कई सौ वर्षों तक इसका महत्त्व बना रहा और आज भी है। | *भड़ौच प्राक् मौर्य काल का एक महत्त्वपूर्ण [[बन्दरगाह]] था। इसके बाद के कई सौ वर्षों तक इसका महत्त्व बना रहा और आज भी है। | ||
*[[यूनानी]] भूगोलवेत्ता 'पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी' के लेखक [[टॉल्मी]] ने भरुकच्छ को बैरीगोजा कहा है। उसके अनुसार [[समुद्र]] से 3 मील दूर पर [[नर्मदा नदी]] के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा पुर था। | *[[यूनानी]] भूगोलवेत्ता 'पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी' के लेखक [[टॉल्मी]] ने भरुकच्छ को बैरीगोजा कहा है। उसके अनुसार [[समुद्र]] से 3 मील दूर पर [[नर्मदा नदी]] के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा पुर था। | ||
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08:03, 27 मई 2018 के समय का अवतरण
भृगुकच्छ भड़ौंच नगर का प्राचीन नाम है। यहीं महर्षि भृगु का आश्रम था।[1]
- भरूच प्राचीन काल में 'भरुकच्छ' या 'भृगुकच्छ' के नाम से प्रसिद्ध था।
- भरुकच्छ एक संस्कृत शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है।
- भड़ौच प्राक् मौर्य काल का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था। इसके बाद के कई सौ वर्षों तक इसका महत्त्व बना रहा और आज भी है।
- यूनानी भूगोलवेत्ता 'पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी' के लेखक टॉल्मी ने भरुकच्छ को बैरीगोजा कहा है। उसके अनुसार समुद्र से 3 मील दूर पर नर्मदा नदी के उत्तर की ओर स्थित बैरीगोजा एक बड़ा पुर था।
इन्हें भी देखें: भरूच
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |