विशाला नगरी
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विशाला नगरी का उल्लेख वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड[1] में हुआ है, जो संभवतः बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध वैशाली (बसाढ़, ज़िला मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार) का ही रामायण कालीन नाम है।[2]
- इस नगरी को *राम-लक्ष्मण ने विश्वामित्र के साथ अयोध्या से जनकपुर जाते समय गंगा को पार करने के पश्चात् देखा था-
'उत्तरं तीरमासाद्य संपूज्यर्विगणं ततः, गंगाकूले निविष्टास्ते विशालां ददृशुः पुरीम्।'
- विशाला नगरी के राजवंश की कथा वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड[3] में है, जिससे ज्ञात होता है कि इस नगरी को बसाने वाला 'विशाल' नामक राजा था, जो अलंबुषा नाम की अप्सरा से उत्पन्न इक्ष्वाकु का पुत्र था। रामायण की कथा के समय यहां राजा सुमति का राज्य था-
'अलम्बुषायामुत्पन्नो विशाल इति विश्रुतः तेल चासीदिह स्थाने विशालेति पुरीकृता..., तस्य पुत्रो महातेजाः संप्रत्येष पुरीमिमाम्, आवसत्परमप्रख्यः सुमतिर्नादुर्जयः।'[4]
- विशाला पहुंचकर राम-लक्ष्मण ने एक रात्रि के लिए सुमति (विशाल के पुत्र) का अतिथ्य ग्रहण किया था।[2] अगले दिन विशाला से चलकर थोड़ी दूर पर स्थित मिथिला नगरी या जनकपुर पहुंच कर राजा जनक की राजधानी में प्रवेश किया था-
'ततः परमसत्कारं सुमतेः, प्राप्य राघवौ उष्य तत्र निशामेकां जग्मतुर्मिथिलां ततः।'
- विष्णुपुराण[5] में भी विशाला नगरी को राजा विशाल द्वारा निर्मित बताया गया है और इसे अलम्बुषा अप्सरा का ही पुत्र माना है, किंतु इसके पिता को यहाँ तृणबिंदु कहा गया है-
'ततश्चालंवुषानाम वराप्सरास्तृणबिंदू भेजे तस्यामप्यस्य विशालो जज्ञेयः पुरीं विशालां निर्ममे।'
'प्राप्यावन्तीमुदयनकथा कोविदग्रामवृद्धान् पूर्वोद्दिष्टासनुसरपुरीं श्रीविशलां विशालाम्।'
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