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समुद्र की प्रार्थना पर [[श्रीराम]] ने अपने चढ़ाए हुए [[बाण अस्त्र|बाण]] को, जिससे वह समुद्र को दंडित करना चाहते थे, द्रुमकुल्य की ओर फेंक दिया था। जिस स्थान पर वह बाण गिरा था, वहाँ समुद्र सूख गया और [[मरुस्थल]] बन गया, किन्तु यह स्थान राम के वरदान से पुन: हरा-भरा हो गया-
समुद्र की प्रार्थना पर [[श्रीराम]] ने अपने चढ़ाए हुए [[बाण अस्त्र|बाण]] को, जिससे वह समुद्र को दंडित करना चाहते थे, द्रुमकुल्य की ओर फेंक दिया था। जिस स्थान पर वह बाण गिरा था, वहाँ समुद्र सूख गया और [[मरुस्थल]] बन गया, किन्तु यह स्थान राम के वरदान से पुन: हरा-भरा हो गया-


'उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम, द्रुमकुल्य इतिख्याता लोके ख्यातो यथा भवान्। उग्रदर्शनकर्माणां बहवस्तत्र दस्यव:, आभारप्रमुखा: पापा: पिबन्ति सलिलं मम। तैर्न तत्त्स्पर्शन पापं सहेय पाकर्मिभि:, अमोघ: क्रियता राम अयं तत्र शरोत्तम:। तेन तन्मरुकान्तारं पृथिव्या किल विश्रुतम्, निपातित: शरो यत्र बज्राशिनसमप्रभ:। विख्यात त्रिषु लोकेषु मरुकान्तारमेक्च, शोषयित्वात् तं कुक्षि रामो दशरथात्मज:। वर तस्मै ददौविद्वान मखेऽमरविक्रम:, पशव्यश्चाल्परोगश्च फलमूलरसायुत:, बहुस्नेहो बहुक्षीर: सुगंधिर्विविधौषधि:'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], युद्ध काण्ड 22, 29-30-31-33-37-38.</ref>
'उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम, द्रुमकुल्य इतिख्याता लोके ख्यातो यथा भवान्। उग्रदर्शनकर्माणां बहवस्तत्र दस्यव:, आभारप्रमुखा: पापा: पिबन्ति सलिलं मम। तैर्न तत्त्स्पर्शन पापं सहेय पाकर्मिभि:, अमोघ: क्रियता राम अयं तत्र शरोत्तम:। तेन तन्मरुकान्तारं पृथिव्या किल विश्रुतम्, निपातित: शरो यत्र बज्राशिनसमप्रभ:। विख्यात त्रिषु लोकेषु मरुकान्तारमेक्च, शोषयित्वात् तं कुक्षि रामो दशरथात्मज:। वर तस्मै ददौविद्वान् मखेऽमरविक्रम:, पशव्यश्चाल्परोगश्च फलमूलरसायुत:, बहुस्नेहो बहुक्षीर: सुगंधिर्विविधौषधि:'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], युद्ध काण्ड 22, 29-30-31-33-37-38.</ref>
*अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड<ref>अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड 3, 81</ref> में भी द्रुमकुल्य का उल्लेख है-
*अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड<ref>अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड 3, 81</ref> में भी द्रुमकुल्य का उल्लेख है-
<blockquote>'रामोत्तरप्रदेशे तु द्रुमकुल्य इति श्रुत:'।</blockquote>
<blockquote>'रामोत्तरप्रदेशे तु द्रुमकुल्य इति श्रुत:'।</blockquote>

14:20, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

द्रुमकुल्य भारत और लंका के बीच के समुद्र के उत्तर की ओर स्थित एक देश था। रामायण काल में यहाँ आभीरों का निवास था।

रामायण उल्लेख

समुद्र की प्रार्थना पर श्रीराम ने अपने चढ़ाए हुए बाण को, जिससे वह समुद्र को दंडित करना चाहते थे, द्रुमकुल्य की ओर फेंक दिया था। जिस स्थान पर वह बाण गिरा था, वहाँ समुद्र सूख गया और मरुस्थल बन गया, किन्तु यह स्थान राम के वरदान से पुन: हरा-भरा हो गया-

'उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम, द्रुमकुल्य इतिख्याता लोके ख्यातो यथा भवान्। उग्रदर्शनकर्माणां बहवस्तत्र दस्यव:, आभारप्रमुखा: पापा: पिबन्ति सलिलं मम। तैर्न तत्त्स्पर्शन पापं सहेय पाकर्मिभि:, अमोघ: क्रियता राम अयं तत्र शरोत्तम:। तेन तन्मरुकान्तारं पृथिव्या किल विश्रुतम्, निपातित: शरो यत्र बज्राशिनसमप्रभ:। विख्यात त्रिषु लोकेषु मरुकान्तारमेक्च, शोषयित्वात् तं कुक्षि रामो दशरथात्मज:। वर तस्मै ददौविद्वान् मखेऽमरविक्रम:, पशव्यश्चाल्परोगश्च फलमूलरसायुत:, बहुस्नेहो बहुक्षीर: सुगंधिर्विविधौषधि:'[1]

  • अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड[2] में भी द्रुमकुल्य का उल्लेख है-

'रामोत्तरप्रदेशे तु द्रुमकुल्य इति श्रुत:'।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 455 |

  1. वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 22, 29-30-31-33-37-38.
  2. अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड 3, 81

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