गंगाद्वार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:48, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गंगाद्वार का महाभारत में कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है। गंगा नदी का पहाड़ी से नीचे आकर मैदान में प्रवाहित होने का स्थान 'हरद्वार' या हरिद्वार। यह कहा जाता है कि यहीं भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि को छला था। शैव क्षेत्र के रूप में इसकी ख्याति है।[1]

  • गंगाद्वार का उल्लेख महाभारत में अनेक बार आया है। आदिपर्व[2] में अर्जुन का अपने द्वादश वर्षीय वनवास काल में यहाँ कुछ समय तक ठहरने का वर्णन है-

"सगंगाद्वारमावित्य निवेशमक रोत् प्रभु:।"

  • इसी स्थान पर अर्जुन ने पाताल में प्रवेश कर उस देश की राजकन्या से विवाह किया था।

'एतस्या: सलिलं मर्ध्नि वृषांक: पर्यधारत् गंगाद्वारे महाभाग येन लोकस्थितिर्भवेत्।'[3]

अर्थात् "शिव ने गंगाद्वार में इसी नदी का पावन जल लोक रक्षाणार्थ अपने सिर पर धारण किया था।

'गंगाद्वारमथागम्य भगवान्षिसत्तम:, उग्रमातिष्ठत तप: सह पल्यानुकूलया।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश खण्ड-3 | पृष्ठ संख्या- 343
  2. आदिपर्व 213, 6
  3. वनपर्व 142, 9
  4. वनपर्व 97, 11

संबंधित लेख