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==समान संस्कृति==
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संस्कृति में ये प्रदेश काफ़ी कुछ समान थे। इनमें परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के फलस्वरूप ही बंगाल के प्राचीन काव्य को सामूहिक रूप से 'पांचाली' अर्थात् कान्यकुब्ज देश से संबंधित, कहा जाता था और पंजाब के '[[शक संवत]]' का प्रचार बंगाल में हुआ। यह भी पुरानी अनुश्रुति है कि कान्यकुब्ज (पंचाल) से बुलाए हुए विद्वान [[ब्राह्मण]] और [[कायस्थ]] गौड़ गए थे, जहाँ जाकर उन्होंने बंगाल की संस्कृति को आर्य देश की संस्कृति से अनुप्राणित किया और वर्तमान बंगाल के कुलीन ब्राह्मण तथा कायस्थ इन्हीं [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण|कान्यकुब्ज]] ब्राह्मणों की संतान माने जाते हैं।<ref>दिनेश चंद्र सेन हिस्ट्री ऑफ़ बंगाली लिटरेचर</ref> इसी प्रकार से मिथिला के न्याय दर्शन का पठन-पाठन [[नवद्वीप]] या [[नदिया]] (बंगाल) में पहुँच कर फूला-फला और [[उड़ीसा]] से तो बंगाल का सदा से अभिन्न संबंध रहा ही है।
संस्कृति में ये प्रदेश काफ़ी कुछ समान थे। इनमें परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के फलस्वरूप ही बंगाल के प्राचीन काव्य को सामूहिक रूप से 'पांचाली' अर्थात् कान्यकुब्ज देश से संबंधित, कहा जाता था और पंजाब के '[[शक संवत]]' का प्रचार बंगाल में हुआ। यह भी पुरानी अनुश्रुति है कि कान्यकुब्ज (पंचाल) से बुलाए हुए विद्वान् [[ब्राह्मण]] और [[कायस्थ]] गौड़ गए थे, जहाँ जाकर उन्होंने बंगाल की संस्कृति को आर्य देश की संस्कृति से अनुप्राणित किया और वर्तमान बंगाल के कुलीन ब्राह्मण तथा कायस्थ इन्हीं [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण|कान्यकुब्ज]] ब्राह्मणों की संतान माने जाते हैं।<ref>दिनेश चंद्र सेन हिस्ट्री ऑफ़ बंगाली लिटरेचर</ref> इसी प्रकार से मिथिला के न्याय दर्शन का पठन-पाठन [[नवद्वीप]] या [[नदिया]] (बंगाल) में पहुँच कर फूला-फला और [[उड़ीसा]] से तो बंगाल का सदा से अभिन्न संबंध रहा ही है।


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14:37, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

पंचगौड़ या 'पंचभारत' बंगाल की मध्ययुगीन परम्परा में (12वीं शती ई. तथा तत्पश्चात्) उत्तरी भारत या आर्यावर्त के पाँच मुख्य प्रदेशों को को कहा जाता था। इन पांचों प्रदेशों की संस्कृति में बहुत कुछ समानता पाई जाती थीं।

पाँच प्रदेश

पंचगौड़ में जो प्रदेश सम्मिलित किए जाते थे, वे निम्नलिखित थे-

  1. सारस्वत या पंजाब (सरस्वती नदी का तटवर्ती प्रदेश)
  2. पंचाल या कान्यकुब्ज (कन्नौज)
  3. गौड़ या बंगाल
  4. मिथिला या दरभंगा (बिहार)
  5. उत्कल या उड़ीसा

समान संस्कृति

संस्कृति में ये प्रदेश काफ़ी कुछ समान थे। इनमें परस्पर विचारों के आदान-प्रदान के फलस्वरूप ही बंगाल के प्राचीन काव्य को सामूहिक रूप से 'पांचाली' अर्थात् कान्यकुब्ज देश से संबंधित, कहा जाता था और पंजाब के 'शक संवत' का प्रचार बंगाल में हुआ। यह भी पुरानी अनुश्रुति है कि कान्यकुब्ज (पंचाल) से बुलाए हुए विद्वान् ब्राह्मण और कायस्थ गौड़ गए थे, जहाँ जाकर उन्होंने बंगाल की संस्कृति को आर्य देश की संस्कृति से अनुप्राणित किया और वर्तमान बंगाल के कुलीन ब्राह्मण तथा कायस्थ इन्हीं कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की संतान माने जाते हैं।[1] इसी प्रकार से मिथिला के न्याय दर्शन का पठन-पाठन नवद्वीप या नदिया (बंगाल) में पहुँच कर फूला-फला और उड़ीसा से तो बंगाल का सदा से अभिन्न संबंध रहा ही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 508 |

  1. दिनेश चंद्र सेन हिस्ट्री ऑफ़ बंगाली लिटरेचर

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