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'''कांचनगिरि''' [[विदेह]] के [[उत्तर कुरु]] व देवकुरु में सीता व सीतोदा नदी के दोनों तटों पर पचास-पचास अथवा नदी के भीतर स्थित दस-दस द्रहों के दोनों ओर पाँच-पाँच करके, कंचन वर्ण वाले कूटाकार सौ-सौ [[पर्वत]] हैं। अर्थात् देवकुरु व उत्तर कुरु में पृथक- | '''कांचनगिरि''' [[विदेह]] के [[उत्तर कुरु]] व देवकुरु में सीता व सीतोदा नदी के दोनों तटों पर पचास-पचास अथवा नदी के भीतर स्थित दस-दस द्रहों के दोनों ओर पाँच-पाँच करके, कंचन वर्ण वाले कूटाकार सौ-सौ [[पर्वत]] हैं। अर्थात् देवकुरु व उत्तर कुरु में पृथक-पृथक् सौ-सौ हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jainkosh.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8_%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BF |title=कांचन गिरि|accessmonthday= 21 नवम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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13:29, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
कांचनगिरि विदेह के उत्तर कुरु व देवकुरु में सीता व सीतोदा नदी के दोनों तटों पर पचास-पचास अथवा नदी के भीतर स्थित दस-दस द्रहों के दोनों ओर पाँच-पाँच करके, कंचन वर्ण वाले कूटाकार सौ-सौ पर्वत हैं। अर्थात् देवकुरु व उत्तर कुरु में पृथक-पृथक् सौ-सौ हैं।[1]
- यह पर्वत वानर यूथपति केसरी का निवास स्थान था, जो श्रीराम के भक्त हनुमान के पिता थे।
- लंका पर विजय प्राप्त करके जब श्रीराम पुष्पक विमान द्वारा किष्किंधा से अयोध्या जा रहे थे, तब विमान कांचनगिरि की ओर चल पड़ा और कांचनगिरी पर्वत पर उतरा। श्रीराम स्वयं सबके साथ माँ अंजना के दर्शन के लिए गये थे।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कांचन गिरि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 नवम्बर, 2013।
- ↑ अंजनी पुत्र हनुमान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 नवम्बर, 2013।